चढ़ने को जिस शिखर पर नज़र तक डरती हैबोझ ढोकर तू वहां से सहज उतरती हैसूर्य की किरण जहाँ झांकने से कांपती है उन वि...
उतराखण्ड की माटी ने सदियों से अनेकों अनेक वीरों को जन्म दिया है। एक से एक वीर- बहादुर सैनिकों की वीरता की गाथा...
अपने वतन(प्रदेश),घर से अधिक दिनो तक दूरी मनुष्य तो क्या पशु पक्षी भी बरदशत नहीं कर सकते। फिर मनुष्य तो सामाजिक...
म्यार ददा न सन्दूण तख्ता चिरी कनवे तै बंसूलु लछे अर रंदा घिसी कनम्यार बुबा कुणी चिपळी सी पाटी बणायीयी पाटी मा ...
'खुदेड़ बेटी' कविता में कवि ने मायके की याद में तड़फती एक बेटी का गढ़वाली भाषा मे बड़ा ही हृदय विदारक एवम् मार्मिक...
उठा गढ़बालियों - कविता – उठा गढ़बालियों, अब त समय यो सेण[को नीछ।तजा यीं मोह-निद्रा कू अजौं तैं जो पड़ीं ही छ।अ...
विरह - कविता – आयो चैतर मास, सुणा दौं मेरी ले सासवण-वणूडें सबी मौली गैन, चीटें मौली गैन घासस्वामी मेरो परदेस ग...
कुछ नी कन्नी सरकार - कविता – ये व्यंग्य रुपी कविता उन अकर्मण्य लोगों को समर्पित है जो कि अपने-आप तो कुछ नहीं...
छाँछ छोली रौड़ी - कविता – छाँछ छोली रौड़ी,डाँड मा फूल फूल्याँ, आई रितु बौड़ी।खणी जालो च्यूणो,चार दिन होन्द, मन...
बुरो संग - कविता – अकुलौ 1 माँ माया 2 करी, कैकी 3 बी नी पार तरी।बार बिथा सिर थरी , कू रोयेंद ।जख तख मिसे लांद,...
चढ़ने को जिस शिखर पर नज़र तक डरती हैबोझ ढोकर तू वहां से सहज उतरती हैसूर्य की किरण जहाँ झांकने से कांपती है उन वि...
अपने वतन(प्रदेश),घर से अधिक दिनो तक दूरी मनुष्य तो क्या पशु पक्षी भी बरदशत नहीं कर सकते। फिर मनुष्य तो सामाजिक...
म्यार ददा न सन्दूण तख्ता चिरी कनवे तै बंसूलु लछे अर रंदा घिसी कनम्यार बुबा कुणी चिपळी सी पाटी बणायीयी पाटी मा ...
'खुदेड़ बेटी' कविता में कवि ने मायके की याद में तड़फती एक बेटी का गढ़वाली भाषा मे बड़ा ही हृदय विदारक एवम् मार्मिक...
उठा गढ़बालियों - कविता – उठा गढ़बालियों, अब त समय यो सेण[को नीछ।तजा यीं मोह-निद्रा कू अजौं तैं जो पड़ीं ही छ।अ...
कुछ नी कन्नी सरकार - कविता – ये व्यंग्य रुपी कविता उन अकर्मण्य लोगों को समर्पित है जो कि अपने-आप तो कुछ नहीं...
छाँछ छोली रौड़ी - कविता – छाँछ छोली रौड़ी,डाँड मा फूल फूल्याँ, आई रितु बौड़ी।खणी जालो च्यूणो,चार दिन होन्द, मन...