रणसिंघा भारत का एक प्राचीन संगीत वाद्ययंत्र है। जो भारत के प्राचीन संगीत वाद्ययंत्रों के होने के साथ साथ उत्तराखंड के लोक संगीत में भी एक महत्वपूर्ण स्थान रखता था। रणसिंघा के नाम से ही स्पष्ट है, “रणभूमि में सिंह की जैसे गर्जना करने वाला” क्योंकी यह युद्ध को प्रारम्भ करने की घोषणा के लिए बजाये जाते थे। यह एक प्राकृतिक तुरही की जैसी होती है, जिसमें बहुत पतली धातु के चार पाइप होते हैं जो एक के भीतर एक फिट होते हैं।
पहले गढ़वाली लोक नाटक, लोक अनुष्ठान, सामुदायिक थिएटर और पारंपरिक नाटकों में प्रयुक्त होने वाला वाद्ययंत्र था। जो धातु से बनी होती है, जिसे प्रायः मांगलिक पर्वों पर भी बजाय जाता था। रणसिंहा के अन्य नाम जैसे तुरी, तुरही, बुगडु, नरसिंह भारत के विभिन्न क्षेत्रों में बोले जाते हैं।
उत्तराखंड में अब रणसिंघा न के बराबर ही दिखाई देते है। लोक संस्कृतियों में भी इसका किसी प्रकार का कोई महत्व नहीं दीखता। जहा ये भारत के अन्य राज्यों में आज भी लोगो द्वारा उपयोग किये जाते है, वही पर उत्तराखण्ड में ये पुरातन वाद्य यंत्रो की श्रेणी में ही आते है।