उत्तराखंड की लोक संस्कृति में इस प्रकार के वाद्य यन्त्र मिलते है, जिनमे विभिन्न प्रकार की परिस्थितियों के अनुरूप भावनाओं को अभिवयक्त करने की क्षमता पायी जाती है । अल्गोज़ा नामक वाद्य यन्त्र उनमे से एक है, यह बांस से बनी एक दोहरी बांसुरी होती है, जो की बैगपाइप (मशकबीन) के सिद्धांत पर ही कार्य करती है। मुख्यतः अलगोज़ा एक संगीत वाद्ययंत्र है जो सिंधी संगीत से उत्पन्न हुआ है। यह एक बांसुरी जैसा वाद्य यंत्र है जिसमें एक जोड़ी लकड़ी के पाइप होते हैं। बाद में राजस्थान और फिर उत्तराखंड की लोक संगीत का हिस्सा बना ,अल्गोज़ा को सतारा, दो-नल्ली और जोरही के नाम से भी जाना जाता है।
जहा उत्तराखंड में इसे अल्गोज़ा नाम से जाना जाता है, वही सिंधी में पादुथम्बी,पंजाबी में शाहमुखी, गुजरती में जोड़ी पाव और कच्छी भाषा में जोधा पाव कहा जाता है।
एक कवि द्वारा अलगोज़ा के लिए बहुत ही सुन्दर पंक्तियों में लिखा गया है की -
" सुर साधने का प्रयत्न और अपने अपने अंत: और बाहरी दुनिया के बाँसुरियों से उसके लिए द्वंद्व और दौड़ की धुन है अलगोज़ा"