Pichoda

Pichoda Uttarakhand

भारत में विविधताओं  से भरी संस्कृतियाँ बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान रखती है ,और इसी प्रकार उत्तराखंडी लोक संस्कृति में कुमाउनी समुदाय के  अंतर्गत विभिन्न प्रकार के परिधान देखे  जा सकते  है। जो की कुमाउनी संस्कृति में एक विशेष महत्व रखती है। इसी शृंखला में कुमाऊ की शान पिछोड़ा एक बहुत महत्वपूर्ण परिधान माना जाता है। स्थानीय भाषा में रंगवाली भी कहा जाता है।

 

 

 

  • शादी नामकरण व्रत त्यौहार और विभिन्न धार्मिक कार्यक्रमों में यह पारम्परिक परिधान महिलाओं के द्वारा पहना जाता है। इन्हे खास तोर पर लहंगे  व साड़ियों के साथ पहनने का प्रचलन है।
  • मुख्य रूप से सुहागन महिलाओं के सुहाग  का प्रतीक माना जाता  है । वर्षो से चली आ रही  परम्पराओ के अनुसार कही स्थानों पर इसे शादी के समारोह में भेट किया जाता है। यह  कुमाउनी संस्कृति का एक अभिन्न अंग कहा जाता है।
  • गहरा पीला और सुर्ख लाल  रंग  से सुनहरे गोटे द्वारा उकेरी गयी सुन्दर किनारी से सुसज्जित रंगीला पिछोड़ा रूप में जाना जाता है। स्वस्तिक, ॐ और शंक की आकृतियों से सुसज्जित एक प्रकार का दुप्पट्टा होता है ।
  • इसका लाल रंग विवाहिक जीवन की संयुक्तता , अच्छे स्वास्थ्य वं सम्पन्नता का प्रतिक माना जाता है। और पीला तथा सुनहरा संसार से जुड़े दर्शन को दर्शाता है।
  • पिछोड़ा में पहले स्वस्तिक को बनाया जाता था, और फिर इसमें शंख , घंटा , व सूर्य आदि की आकृतिया भी बनाई जाने लगी। ऐसी मान्यता है की ये आकृतिया शुभ संकेतक होते है ।
  • कहते है की पहले पिछोड़ा अर्थात रंगवाली को घर पर ही मलमल या सूती कपडे में तैयार किया जाता था। इसकी रंगाई छपाई और इसमें गोटा लगाने की सभी प्रक्रियाएं घर पर ही होती थी। परन्तु अब आधुनिकता के चलते और समय के आभाव में  यह बाजारों में अब  बना हुआ मिलता है।
  • इसे देवी की चुनरी के सामान ही पवित्र मानते है। और इसी रूप में इसका आदर होता है। सारे परिधानों में पिछौड़ा सर्वोच्च है तभी तो तीज त्योहार और शुभ कार्य में देवी को भी चढ़ाया जाता है। शुभ काम में पिछौड़ा गणेश पूजा के दिन से पहना जाता है।
  • पिछौड़ा कुमाऊंनी संस्कृति की की एक मुख्य पहचान है। एक सुहागन की पहचान और मंगल का प्रतीक माना जाता है। इसी कारण किसी युवती को शादी के दिन ही पहली बार पिछौड़ा पहनाया जाता है।
  • जानकार बताते हैं कि पहले के समय में पिछौड़ा दुल्हन को ही पहनाया जाता था। जिससे वही आकर्षित अवं सबसे अलग लगे । अब शादी से लेकर कोई भी शुभ काम में परिवार की सभी महिलाएं इसे पहनती हैं। अनिवार्य है।
  • रंगवाली पिचौरा की एक अन्य मुख्य विशेषता यह है कि इसे विधवाओं द्वारा भी डाला जा सकता है, जो सामाजिक परंपराओं के अनुसार हैं, उन्हें रंगीन वस्त्र पहनने के लिए नहीं माना जाता है।
  • स्वास्तिक देवी और देवताओं का प्रतिनिधित्व करता है। यह सभी धार्मिक अनुष्ठानों में किसी न किसी रूप में तैयार किया जाता है। यह 'कर्मयोग' को दर्शाता है। आगे की ओर इशारा करती इसकी चार भुजाएं आगे बढ़ने की प्रेरणा देती हैं।
  • केंद्र में, एक स्वस्तिक ’और चार चतुर्थांश में स्वस्तिक, सूर्य, शंख (क्रॉन्च शेल), ए बेल के साथ’ ओम ’और देवी को बनाया जाता है।
  • स्वस्तिक कुछ ज्यामितीय चित्र या पत्तियों और फूलों को खींचकर बनाया जाता है और फिर छोटे डॉट्स से घिरा होता है। फिर बड़े आकार के डॉट्स सभी पर मुद्रित होते हैं। यह मुद्रण एक सुंदर सीमा से घिरा हुआ है। सीमा के बाद, फीता और किनारी या झालर को सिलाई करने के लिए अधिक रंगीन, आकर्षक और जीवंत बनाया जाता है।
  • रंगवाली पिछौड़ा में बनने वाले सवस्तिक के चिन्ह का भी महत्व होता है। इसके चारो चतुरतांश के अलग अलग महत्व है
  • स्वस्तिक का पहला चतुर्थांश सूर्य, महान शक्ति वाला देवता है। पुत्रों की भलाई के लिए सूर्य की पूजा की जाती है। दूसरा चतुर्थांश घरों में समृद्धि और सभी पास और डेरों की भलाई के लिए, तीसरे चतुर्थांश में एक शंख है जिसे पूजा के दौरान उड़ा दिया जाता है और सभी बीमार शगुनों को समझा जाता है कि वे इस ध्वनि से डरें और आसपास किसी को भी नुकसान न पहुंचाएं। अंतिम चतुर्थांश में एक बेल है जिसका उपयोग पूजा में भी किया जाता है।
  • यह सफेद कपड़े के ऊपर बनाया जाता है, सफेद का अर्थ शांति और पवित्रता से है। रंगों में प्रयोग होने वाला बतासा कुमाऊं की मिठास घोलता है। बुजुर्ग महिलाओं के सानिध्य में नई पीढ़ी इस कला को सीखती थी। हाथ से पिछौड़ा बनाना कोई आसान काम नहीं है।
  • अल्मोड़ा के पिछौड़े ही सबसे अच्छे माने जाते हैं। सहालग में पिछौड़ों की मांग बढ़ जाती है। भले ही बाजार में प्रिटेंड पिछौड़े खूब बिकते हैं पर कुमाऊंनी संस्कृति से लगाव रखने वाले लोग हाथ से बना पिछौड़ा ही पसंद करते हैं।
  • पिछोड़ा को पर्वतीय क्षेत्रों के साथ साथ शहरी तथा विदेशो में रहने वाले पर्वतीय परिवार भी बहुत अधिक पसंद करते है। तथा अपने मांगलिक कार्यक्रमों में इसको अवश्य ही शामिल करते है।

 

 

 

पिछौड़ा शब्द से ही परम्परा और लोक पक्ष जुड़ा है। इसमें सुहाग और शुभ से संबंधित चीजें उकेरी होती हैं। पिछौड़ा पहनने और इसे बनाने का लिखित तौर पर कुछ नहीं है। यह ऐसी परंपरा है जो हमें विरासत में मिली है।