उत्तराखंड के रोम रोम में संगीत बसता है, और यह संगीत विभिन्न वाद्य यंत्रो से निकल कर एक अलग ही अनुभूति देता है। इसी श्रृंखला में मशकबीन उत्तराखंड लोक संगीत में व्यापक स्वीकार्यता प्राप्त करने वाला संगीत वाद्ययंत्र बन गया है। स्थानीय लोगो द्वारा इसे "मुसाबाज" नाम से भी जाना जाता है।
बैगपाइप ने ब्रिटिश काल के दौरान गढ़वाल और कुमाऊं में तैनात सेना की टुकड़ियों के माध्यम से उत्तराखंड की पहाड़ियों में प्रवेश किया और यही संगीत वाद्ययंत्र डेढ़ सदी में पहाड़ी राज्य में लोक संगीत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया। शादी हो या कोई भव्य आयोजन, इसकी उपस्थिति उत्तराखंड लोक संगीत में माधुर्य जोड़ने के लिए अवश्य दर्ज कराई जाती है। इसे ढोल और दमऊं के साथ बजाया जाता है और ये साथ में धुन उत्त्पन्न करते है।
अस्सी साल पुराना मशकबीन बजाने वाले जिला पौड़ी के गांव पिसानी से प्रेम दास कहते हैं, "यह एक अच्छा संकेत है" कि मशकबीन बजाने वाले युवाओं की संख्या बढ़ रही है। अपने युवा दिनों में मैं ढोल बजाता था, लेकिन एक साथी ग्रामीणों को मशकबीन बजाते देखने के बाद मुझे इससे लगाव हो गया। मैंने बैगपाइपर बनने का फैसला किया और इसे आज तक निभा रहा हूं।
लोगो के द्वारा पलायन और आधुनिक संगीत की प्रति रुझान ने इसका चलन काम तो कर दिया था, परन्तु कुछ ही समय से शहरी लोग भी इसे अपने वैवाहिक आयोजनों में महत्व देते है। दूसरे शब्दों में यदि कहा जाये तो एक प्रकार से इसका "पुनरुत्थान" हुआ है।