जटामांसी सहपुष्पी औषधीय पौधा होता है, जो की एक सुंगधित शाक होता है इसको जटामांसी इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसके जड़ों में जटा या बाल जैसे तंतु लगे होते हैं। ये दिखने में काले रंग की किसी साधू की जटाओं की तरह होती है। इनको बालझड़ भी कहा जाता हैं। जटामांसी के अनेक फायदे होते हैं कि आयुर्वेद में इसको कई बीमारियों के लिए औषधि के रुप में प्रयोग में लाया जाता है। इसकी दो प्रजातियों को गन्धमांसी तथा आकाशमांसी नाम से जाना जाता है। चरक-संहिता में धूपन द्रव्यों में जटामांसी का उल्लेख मिलता हे।
इसका तने का ऊंचा भाग में रोम वाला तथा आधा भाग में रोमहीन होता है। भूमि के ऊपर जड़ से इसकी कई शाखाएं निकलती हैं। इसकी जड़ काष्ठीय, लम्बी तथा रेशों से ढकी रहती है। इसका पुष्पकाल एवं फलकाल अगस्त से नवम्बर तक होता है।
हिंदी- जटामांसी, बालछड
तेल्गू - जटामांही ,
पहाडी - भूतकेश
संस्कृत - जठी, पेशी, लोमशा, जातीला, मांसी, तपस्विनी, मिसी, मृगभक्षा, मिसिका, चक्रवर्तिनी, भूतजट
यूनानी - सुबुल