Uttarakhand Chulu UK Academe

चुलुअथवा ख़ुबानी का फल एक छोटे आड़ू के बराबर होता है। इसका रंग आम तौर पर पीले से लेकर नारंगी होता है। इसके के बाहरी छिलका काफी मुलायम होता है, लेकिन उस पर कभी-कभी बहुत महीन बाल भी हो सकते हैं। इसका का बीज फल के बीच में एक ख़ाकी या काली रंग की सख़्त गुठली में बंद होता है,और यह ख़ुरदुरी होती है।

भारत में ख़ुबानियाँ जैसे के कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड उत्तर के पहाड़ी इलाकों में पैदा की जाती है।यह सूखी ख़ुबानी को भारत के पहाड़ी इलाक़ों में बादाम, अख़रोट और न्योज़े की तरह ख़ुबानी को एक ख़ुश्क मेवा समझा जाता है और काफ़ी मात्रा में खाया जाता है।

 

 

खुबानी कई रंगों में आती है जैसे सफेद, काले, गुलाबी और भूरे (ग्रे) रंग से खुबानी के स्वाद पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता, लेकिन इसमें जो कैरोटीन होता है उसमें जरूर अंतर आ जाता है।इसके फूल आकृति विज्ञान में आड़ू, बेर और चेरी के समान हैं।

 

अन्य नाम
अंग्रेजी ऐप्रिकॉट(apricot)
पश्तो ख़ुबानी
फ़ारसी ज़र्द आलू
मराठी जर्दाळू
उत्तराखंड चुलू

 

  • इसके फल को तजा और सूखा कर दोनों तरीके से खाया जाता है। इसके फल स्वादिष्ट स्वाद  के साथ सबसे अच्छे रूप नरम और रसदार होते हैं। और फल मैं विटामिन सी पाया jata है। 
  • इसमें एक बड़ा बीज होता है, जो दो प्रकार से कच्चा या पकाया हुआ खाया जाता है ।
  • कड़वे बीजों को सख्त मात्रा में खाया जाता है ,लेकिन मीठे को ऐसे ही खाया जा सकता है।
  • कड़वे बीज का उपयोग मार्जिपन आदि बनाने में कड़वे बादाम के विकल्प के रूप में किया जा सकता है।
  • इसको एनाल्जेसिक, कृमिनाशक, विषहर औषध, ज्वरनाशक, एंटीसेप्टिक, कासरोधक के रूप मैं उपयोग किया जाता है।
  • यह शांतिदायक होता है और इससे उबकाई आने जैसी समस्या से भी निजात मिलती है।
  • खुबानी के फलों में साइट्रिक और टार्टरिक एसिड, कैरोटीनॉइड और फ्लेवोनोइड्स होते हैं।
  • वियतनाम में सांस और पाचन रोगों के उपचार में औषधीय रूप से उपयोग किया जाता है।
  • इसके छाल का स्वाद कसैला होता है। आंतरिक छाल और या जड़ का उपयोग कड़वा बादाम और खुबानी के बीज (जिसमें हाइड्रोजन साइनाइड होता है) खाने के कारण होने वाले विषाक्तता के इलाज के लिए किया जाता है।
  • इसकी बाहरी छाल का काढ़ा हाइड्रोजन साइनाइड के प्रभावों को बेअसर करने के लिए उपयोग किया जाता है।
  • काढ़े का उपयोग सूजन और चिड़चिड़ी त्वचा की स्थिति को शांत करने के लिए भी किया जाता है ।
  • इसका बीज एनाल्जेसिक, कृमिनाशक, कृमिनाशक, कृमिनाशक, वातनाशक, प्रजातांत्रिक, वातकारक, शोषक, पेक्टोरल, शामक और विरेचक होता है ।
  • इसका उपयोग अस्थमा, खांसी, तीव्र या पुरानी ब्रोंकाइटिस और कब्ज के उपचार में किया जाता है।
  • इसके उपयोग से पाचन  संभंधित तक़लीफ़े भी दुर होती  है।
  • इससे गम, तेल, लकड़ी आदि भी प्राप्त होती है। 
  • इसके बीज से सुपाच्य अर्द्ध शुष्क तेल प्राप्त किया जाता है , इसके बीज में 50% तक एक खाद्य अर्ध-सुखाने वाला तेल होता है।
  • प्रकाश व्यवस्था के लिए उपयोग किया जाता है । तेल का त्वचा पर नरम प्रभाव पड़ता है और इसलिए इसका उपयोग इत्र और सौंदर्य प्रसाधनों में किया जाता है, और फार्मास्यूटिकल्स में भी आदि मैं भी इसका उपयोग करते है।
  • इसके पेड़ की पत्तियों से एक हरी डाई प्राप्त की जा सकती है।
  • एक गहरे भूरे से हरे रंग की डाई को फल से प्राप्त किया जा सकता है।
  • इसकी लकड़ी सुंदर, कठोर, टिकाऊ होती है तथा कृषि औजार आदि बनाने मैं उपयोग की जाती है।

 

 

Kingdom  Plantae
Clade Angiosperms
Order Rosales
Family Rosaceae
Genus Prunus
Section   Prunus sect. Armeniaca
Species  P. armeniaca
Binomial name  Prunus armeniaca L.