उत्तराखण्ड के मुख्य कृषिकरण में यूं तो भंगजीर का कोई खास स्थान नहीं है किंतु इसकी विशेष पोषकता तथा औषधीय महत्व को देखते हुए विश्वभर में भंगजीर का बहुतायत में उपयोग किया जाता है। उत्तराखण्ड में भंगजीर को कच्चा ही स्वाद तथा घरेलू उपयोगों में जैसे चटनी आदि मे प्रयुक्त किया जाता है।
वैज्ञानिकों के मुताबिक भंगजीरा (वैज्ञानिक नाम- पैरिला फ्रूटीसैंस) आमतौर पर उत्तराखंड की एक अल्प उपयोगी फसल है। वर्तमान में यह सिर्फ किचन गार्डन तक ही सीमित है। स्थानीय लोग भंगजीरा का उपयोग चटनी के रूप में करते हैं।
हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, कैंसर जैसी बीमारियों में फायदेमंद कॉड लीवर आयल का उपयोग कोलेस्ट्रॉल, डायबिटीज को कम करने के अलावा उच्च रक्तचाप, हृदयरोगों, ओस्टियोआर्थराइटिस, मानसिक तनाव, ग्लूकोमा व ओटाइटिस मीडिया जैसी बीमारियों के इलाज में होता है।
मृत कोशिकाओं को हटाने के साथ-साथ कैंसर एवं एलर्जी में भी यह बेहद लाभकारी है। ओमेगा-3 फैटी एसिड कॉड लीवर के अलावा अन्य समुद्री मछलियों में भी पाया जाता है।
वैज्ञानिकों का दावा है कि भंगजीरा का प्रयोग कॉड लीवर आयल की तुलना में अधिक सुरक्षित है। वसीय तेलों से हानिकारक तत्व जैसे पारा इत्यादि के मानव शरीर में पहुंचने का खतरा रहता है।
इससे दूसरी बीमारियों की संभावना होती है। "भंगजीरा" का तेल पूरी तरह शाकाहारी होने के साथ बेहद लाभकारी है।
भंगजीर को इसके अलावा सिलाम, मिजो, शिसो आदि नामों से जाना जाता है।
उत्तराखण्ड में भंगजीर का उत्पादन पर्वतीय क्षेत्रों में किया जाता है तथा सीमित घरेलू उपयोगों तक ही प्रयोग में लाया जाता है। जबकि भंगजीर में पोषक गुणों के अलावा विभिन्न औषधीय गुण भी है। इसके बीज तथा पत्तियों को पराम्परागत रूप से ही श्वसन तथा पेट संबंधी विकारों को दूर करने हेतु किया जाता है। इसके अलावा चीन द्वारा भंगजीर को विभिन्न चायनीज औषधियों में भी प्रयुक्त किया जाता है। विश्वभर में इसके इसेन्सियल ऑयल की वृहद मांग है तथा इसका बहुतायत मात्रा में उत्पादन किया जाता है। भंगजीर में 0.3 से 1.3% इसेन्सियल ऑयल पाया जाता है, जिसमें प्रमुख रूप से
तक की मात्रा में पाये जाते है। भंगजीर में पाये जाने वाले मुख्य अव्यव पेरिलाएल्डिहाइड, पेरिलार्टीन (Perillartine) को बनाने का मुख्य अव्यव है जो कि सर्करा से 2000 गुना अधिक मीठा होता है तथा तम्बाकू आदि में प्रयोग किया जाता है। भंगजीर के बीज में लिपिड की अत्यधिक मात्रा लगभग 38-45 प्रतिशत तक पायी जाती है तथा ओमेगा-3, 54-64 प्रतिशत एवं ओमेगा-6, 14 प्रतिशत तक की मात्रा में पाया जाता है। इसके अलावा भंगजीर में कैलोरी 630 किलो कैलोरी, प्रोटीन- 18.5 ग्रा0, वसा- 52 ग्रा0, कार्बोहाइड्रेटस- 22.8 प्रतिशत, कैल्शियम- 249.9 मिग्रा0, मैग्नीशियम-261.7 मिग्रा0, जिंक - 4.22 मिग्रा0 तथा कॉपर-0.20 मिग्रा की मात्रा प्रति 100 ग्राम तक पायी जाती है।
विश्वभर में कोरिया भंगजीर के बीज का सर्वाधिक उत्पादक देश है जो कि वर्ष 1990-1993 के आंकडों के अनुसार औसतन 28000 से 37000 टन तक का उत्पादन करता है। वर्ष 1990 के एक सर्वे के अनुसार दुनिया भर में इसके इसेन्सियल ऑयल का लगभग 1500 किलो उत्पादन हुआ जिसका मूल्य लगभग 1.8 मिलियन यू0एस0 डॉलर था।
विश्वभर में भंगजीर का प्रयोग फूड, फार्मा, पर्सनल केयर तथा पेंटस आदि के उद्योगों में किया जाता है। फूड्स आदि उद्योगों द्वारा इसके पाउडर को मसालों के रूप में बनाया जाता है तथा पत्तियों को चाय बनाने के लिए तैयार किया जाता है। फार्मा उद्योगों द्वारा इसको एंटी अस्थमा, एंटी नाउसिया, सनस्ट्रोक, मांसपेशी रिलेक्सर तथा स्वीटनर के मुख्य अव्यव के रूप में प्रयोग किया जाता है।
वर्तमान में भंगजीर पर विभिन्न शोध कार्य किये जा रहे है। उत्तराखण्ड में भी इसके उत्पादन को इसकी उपयोगिता तथा महत्ता को समझते हुए बढाया जा सकता है।