Tadkeshwar Mahadev

Tadkeshwar_Mahadev Uttarakhand

गढ़वाल के प्राचीन शिवमदिरों में ताड़केश्चर महादेव का अति महत्व है। पौड़ी जनपद के जयहरीखाल विकासखण्ड के अन्तर्गत लैन्सडौन डेरियाखाल रिखणीखाल मार्ग पर स्थित चखुलाखाल नामक गांव से लगभग 4 किमी० की दूरी पर समुद्रतल से लगभग 6000 फीट की ऊंचाई पर पर्वत श्रृखंलाओं के मध्य एक अत्यन्त रमणीक, शांत एवं पवित्र स्थान पर अवस्थित है। सघन गगनचुम्बी पवित्र देवदार के 5 किमी० फैले जंगल के मध्य में स्थित यह ताड़केश्वर धाम अध्यात्मिक चेतना, धर्मपरायणता व सहिष्णुता का उत्कृष्ट आस्था केन्द्र है। ग्वाड़झिण्डी तथा ग्वारजलोटा पर्वत श्रृखंला की सौन्दर्यमयी आभा यहां से देखते ही बनती है।

 

 

 

  • ताड़केश्वर महादेव मंदिर की पौराणिक कथा है जिसके अनुसार ताड़कासुर नाम का एक राक्षस था जिसने भगवान शिव जी से अमरता का वरदान पाने के लिए इस स्थान पर तपस्या की थी| तत्पश्चात भगवान शिव ताड़कासुर की कठोर भक्ति और पूजा को देखकर ताड़कासुर को अमरता का वरदान प्रदान किया| समय बितने के साथ ताड़कासुर अमरता के वरदान से पृथ्वी मे जाकर बुरे करए और हिंसा करना प्रारम्भ कर देता है और साधु संतो को मारने भी लगता है | ताड़कासुर के ऐसे प्रकोप को पृथ्वी पर देखते हुए संतो ने भगवान शिव से सहायता मांगने का अनुरोध किया | ताड़कासुर से युद्ध करने के लिए भगवान शिव ने माँ पार्वती से विवाह करके कार्तिक को जन्म दिया | जैसे कार्तिक के हाथो ताड़केश्वर मारे ही गए थे तभी ताड़कासुर भगवान शिव से प्रार्थना करने लगे और क्षमा मांगी | तब भगवान शिव उन्हें क्षमा करते हुए कहते है कि कलयुग में तुम्हे लोग भगवान् शिव के नाम से ही पूजा जाएगा  इसी कारण ताड़कासुर की पूजा भगवान् शिव के नाम से ही होती है , इसलिए इस स्थान को  “ताड़केश्वर महादेव” नाम से जाना जाता है | इससे पहले ताड़केश्वर महादेव मंदिर में शिवलिंग मौजूद था लेकिन अब भगवान शिव की मूर्ति मौजूद है जिसकी पूजा होती है । भगवान शिव जी की मूर्ति उसी स्थान हैं, जहां पर शिवलिंग मौजूद था ।
  • दूसरी पौराणिक मान्यता के अनुसार ताड़केश्वर महादेव मंदिर की मान्यता के अनुसार यह भी कहा जाता है कि कहते हैं कि ताड़कासुर का वध करने के बाद भगवान शिव ने इस स्थान पर विश्राम किया था | जब माता पार्वती ने देखा कि भगवान शिव गर्मी से व्याकुल हो गए है   तो माता पार्वती ने स्वयं देवदार के वृक्ष का रूप धारण किया और भगवान शिव को छाया प्रदान की । ताड़केश्वर महादेव मंदिर के प्रांगण में आज भी वे सात ताड़ के पेड़ विराजमान हैं । रामायण में भी ताड़केश्वर का वर्णन एक पवित्र तीर्थ के रूप् में मिलता है।
  • तारकेश्वर महादेव एक सिद्धपीठ मंदिर है और भारतीय राज्य उत्तराखंड में पौड़ी गढ़वाल के लैंसडाउन में स्थित है और इसका लगभग 1500 से 2000 वर्ष पुराना मंदिर है, इसलिए यह एक बहुत ही ऐतिहासिक और धार्मिक स्थान है। मंदिर भगवान शिव को समर्पित है।
  • यहां बाबा ताड़केश्वर के पास लोग अपनी मन्नते के साथ आते हैं और भोलेनाथ अपने भक्तों को कभी निराश नही करते हैं । ऐसी मान्यता है कि जब किसी की मनोकामना पूरी होती है तो वे यहां मंदिर में घंटी चढ़ाते हैं। यहां मंदिर में चढ़ाई गई हजारों घंटियां इस बात का प्रमाण हैं कि यहां बाबा की शरण में आने वाले मनीषियों का कल्याण होता है।
  • श्री ताड़केश्वर महादेव की पूजा एक वर्ष में चार बार होती है , जिसके अंतर्गत 76 गाँव आते है । गाँव में फसल होने पर सर्वप्रथम मन्दिर में भेंट चढ़ाई जाती है । इसके पश्चात ही गाँव वाले फसल को इस्तेमाल करते हैं ।
  • इस मंदिर के दर्शन करने के लिए हर साल हजारों श्रद्धालु आते हैं। यह मान्यता है कि इस मंदिर में माँगी गई हर मन्नत भगवान पूरी करते हैं । हर साल महाशिवरात्रि के दिन मन्दिर मे विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है जो कि मंदिर समिति के द्वारा होता है |
  • जनश्रुति के अनुसार यहां पर सरसों का तेल और कन्दार (शाल) के पत्तों वर्जित है | मंदिर परिसर में एक कुंड है माना जाता है कि यह कुंड ‘देवी लक्ष्मी’ के द्वारा खोदा गया था | इस कुंड के पवित्र जल का उपयोग शिवलिंग में होता है |
  • महाकवि कालिदास ने अपनी रचना रघुवंश खण्डकाव्य के द्वितीय चरण में श्री ताड़केश्वर धाम का बड़ा मनमोहक वर्णन किया है। हिन्दू धर्मग्रन्थ रामायण में ताड़केश्वर धाम का वर्णन एक दिव्य एवमं पावन आश्रम के रूप में किया है।
  • स्कन्दपुराण के केदारखण्ड में विषगंगा एवं मधुगंगा नामक दो पावन गंगाओं का उल्लेख है। इन दोनों महत्वपूर्ण उत्तरवाहिनी नदियों का उदगम स्थल ताड़केश्वर धाम ही है। श्रद्धालु शिवभक्त एवं स्थानीय भक्तगण हजारों की संख्या में प्रतिवर्ष यहां दर्शनार्थ आते हैं।
  • सन 1946 में माहेश्वरी दास बाबा द्वारा स्थापित "माहेश्वरी दास मेडिटेशन आश्रम" व 1955 में स्थापित स्वामीराम साधना मन्दिर यहीं मन्दिर परिसर के समीप ही स्थित है जहां प्रतिवर्ष सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु ध्यान, योग साधना, पूजा पाठ अनुष्ठान व कर्मकाण्ड के अध्ययन हेतु आते हैं
  • देवभूमि उत्तराखंड को महादेव कैलाशपति शिव की तपस्थली कहा जाता है। यहां जगह जगह पर भगवान शिव के अलौकिक मंदिर और उनसे जुड़ी कहानियां साबित करती हैं भगवान शिव इसी धरा पर निवास करते हैं।
  • मंदिर के इस क्षेत्र के 84 से अधिक गांवों के कुल देवता हैं। इस मंदिर में साल में दो बार विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है, जिसमें ग्रामीणों द्वारा भगवान को एक नई फसल भेंट की जाती है।