Sati Anusuya Mandir

Sati_Anusuya_Mandir Uttarakhand

देवभूमि उत्तराखंड को देवी-देवताओं के निवास के रूप में जाना जाता है। सती अनुसूया मंदिर भारत के प्रमुख देवी मंदिरों में से एक है। यह देवी सती को समर्पित एक पवित्र स्थान है। हिमालय की गोद में स्थित इस मंदिर का वातावरण यात्रियों के लिए बहुत ही अनूठा यह मंदिर प्रकृति की खूबसूरत वादियों में स्थित है। यह भव्य मंदिर तीर्थयात्रियों को आकर्षित करता है। तीर्थयात्रियों से लेकर पर्यटकों तक सभी को यह जगह प्रिय लगती है।

अनुसूया देवी मंदिर उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित प्रसिद्ध एवम् धार्मिक मंदिर है। यह मंदिर हिमालय की ऊँची दुर्गम पहाड़ियों पर स्थित है। यह मंदिर समुद्रतल से 2000 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है।

इस मंदिर का महान पुरातात्विक महत्व है। यह माना जाता है कि यह एकमात्र ऐसा स्थान है जहां भक्त श्रद्धा स्वरुप नदी की परिक्रमा करते है। मंदिर में प्रवेश से पहले भगवान गणेश जी की भव्य प्रतिमा के स्थित हैं, जो शिला द्वारा प्राकृतिक रूप से निर्मित है। संपूर्ण मंदिर का निर्माण नागर शैली में हुआ है। मंदिर के गर्भ गृह में सती अनुसूया की भव्य मूर्ति स्थापित है, साथ ही मूर्ति पर चाँदी का छत्र है।


श्री अनुसूया माता के मंदिर के निकट “महर्षि आत्री तपोस्थली” और “दत्तात्रेय” है। मंदिर के प्रांगण में भगवान शिव, माता पार्वती एवं गणेश जी की प्रतिमा भी विराजमान है। इसके साथ ही यहाँ सती अनुसूया के पुत्र “दत्तात्रेय जी की त्रिमुखी” प्रतिमा भी स्थित है।

 

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि इस स्थान को “अत्री मुनि” ने अपनी तपस्थली बनाया था। इसी स्थान पर उनकी पत्नी अनुसूया ने एक कुटिया का निर्माण किया था और वह उसी में रहने लगी थी। देवी अनसूया के बारे में कहा जाता है कि देवी अनुसूया इतनी अधिक पतिवर्ता थी कि उनकी प्रसिद्धता तीनों लोको में फैल गयी थी। उनके इस पतिव्रत गुण को देखकर देवी पार्वती, लक्ष्मी जी और देवी सरस्वती जी के मन में ईर्षा का भाव उत्पन्न हुआ, जिस कारण तीनों देवियों ने मिलकर देवी अनुसूया की सच्चाई और पतिव्रत धर्म की परीक्षा लेने की सोची और अपने पति भगवान शिव, भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा जी को अनुसूया की परीक्षा लेने के लिए भेजना चाहा। लेकिन तीनों भगवान ने अपनी देवियों को समझाने की पूरी कोशिश की, जब देविया नहीं मानी तो तीनों देवता विवश होकर अनुसूया की परीक्षा लेने उसके आश्रम चले गए। वहां जाकर तीनों देवता साधू का रूप धारण कर आश्रम के द्वार पर भोजन की मांग करने लगे, जैसे ही देवी अनुसूया साधुओं को भोजन देने के लिए बढ़ाया। तब तीनों साधू देवी अनुसूया के सामने भोजन स्वीकार करने के लिए एक शर्त रखी कि देवी अनुसूया को निवस्त्र होकर भोजन परोसना होगा, तभी साधू भोजन ग्रहण करेंगे।


इस बात पर देवी अनुसूया चिंतित हो उठी और विचार करने लग गयी कि वो ऐसा कैसे कर सकती है! अंत में देवी आंखे मूंद कर पति को याद करती है, जिससे कि उन्हें दिव्य दृष्टि का आभास होता है और पता चलता है कि साधु के वेश में और कोई नहीं स्वयं तीनों परमेश्वर है।


तब देवी अनुसूया साधुओ की इच्छा पूर्ण करने का संकल्प लेती है , लेकिन इसके लिए वह साधुओं के समक्ष यह शर्त रखती है कि साधुओं को शिशु रूप लेकर उनका पुत्र बनना होगा। इस बात को तीनों देव स्वीकार कर लेते है और शिशु रूप में बदल जाते हैं। फलस्वरुप, माता अनुसूया निवस्त्र होकर तीनों देवो को भोजन करवाती है। इस तरह तीनों देव, देवी अनुसूया के पुत्र बन कर रहने लगते है।


अधिक समय बीत जाने के बाद भी जब तीनों देव देवलोक नहीं पहुँचते है, तो माता पार्वती, लक्ष्मी, सरस्वती चिंतित और दुखी हो जाती है। वे तीनों देवियां, देवी अनुसूया के समक्ष जाकर क्षमा मांगती हैं और अपने पतियों को बाल रूप से मुक्त करवाने की प्रार्थना करती हैं। माता अनुसूया देवियों की प्रार्थना सुनकर तीनों देवो को माफ़ी के फलस्वरूप तीनों देवो को उनका रूप प्रदान कर देती हैं।। तभी से अनुसूया “माँ सती अनुसूया” के नाम से प्रसिद्ध हो गयी।

इस पवित्र मंदिर के दर्शन पाकर सभी लोग धन्य हो जाते हैं और इसकी पवित्रता सभी के मन में समा जाती है। सभी स्त्रियां मां सती अनसूया से पतिव्रता होने का आशीर्वाद पाने की कामना करती हैं। प्रत्येक वर्ष दिसम्बर माह में सती अनुसूया के पुत्र दत्तात्रेय की जयंती का आयोजन किया जाता है और इस महोत्सव के समय मेले का भी आयोजन किया जाता है। इस मेले को देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते है और इसी पवित्र स्थान से पञ्च केदारों में से एक केदार “रुद्रनाथ” जाने का मार्ग भी बनता है।

 

मंदिर पहुँचने के लिए सर्वप्रथम पर्यटकों को ऋषिकेश आना होता है। उसके बाद वे ऋषिकेश से चमोली तक 250 किलोमीटर सड़क मार्ग से पहुँच सकते हैं। यहाँ से बस की सुविधा उपलब्ध होती है। फिर यहाँ से गोपेश्वर पहुँचने के बाद 13 किलोमीटर दूर मंडल तक भी वाहन की सुविधा है। मंडल से पांच किलोमीटर पैदल चढ़ाई चढ़कर “मां अनुसूया देवी मंदिर” तक पहुंचा जा सकता है।