Golu Devta

Golu_Devta Uttarakhand

गोलू देवता या भगवान गोलू कुमाऊं क्षेत्र के पौराणिक और ऐतिहासिक देवता हैं। जिला अल्मोड़ा से 8 किलोमीटर दूर पिथौरागढ़ हाईवे पर न्याय के देवता कहे जाने वाले गोलू देवता का मंदिर स्थित है। इसे चितई ग्वेल भी कहा जाता है। सड़क से चंद कदमों की दूरी पर ही एक ऊंचे तप्पड़ में गोलू देवता का भव्य मंदिर बना हुआ है। मंदिर के अन्दर घोड़े में सवार और धनुष बाण लिए गोलू देवता की प्रतिमा है।

मूल गोलू देवता को गौर भैरव (शिव) के अवतार के रूप में माना जाता है और पूरे क्षेत्र में उनकी पूजा की जाती है। उन्हें भक्तों द्वारा अत्यधिक विश्वास के साथ न्याय करने वाला माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण चंद वंश के एक सेनापति ने 12वीं शताब्दी में करवाया था।

कुमाऊं के कई गांवों में गोलू देवता की प्रमुख देवता के रूप में भी प्रार्थना की जाती है। भगवान गोलू देवता को न्याय के भगवान के रूप में जाना जाता है और बड़े गर्व और उत्साह के साथ प्रार्थना की जाती है।

कुमाऊं के प्रसिद्ध निम्न चार स्थानों में स्थित गोलू देवता का मंदिर स्थित है:

  1. चितई गोलू देवता मंदिर, अल्मोड़ा
  2. गोलू देवता मंदिर, चम्पावत
  3. घोराखाल गोलू देवता मंदिर, घोड़ाखाल
  4. तारीखेत गोलू देवता मंदिर, ताड़ीखेत

 

  • ऐसा कहा जाता है कि श्री कल्याण सिंह बिष्ट (कल्बिश) का जन्म कोटुरा गाँव में एक बड़े गाँव पटिया के पास हुआ था। बहुत ही कम उम्र में श्री कल्बिश ने कुमाऊं क्षेत्र के सभी शत्रुओं पर विजय पा ली थी और उत्पीड़ितों की भी मदद की। श्री कालबिष्ट को संदिग्ध रूप से अपने ही रिश्तेदार द्वारा अपने ही कुल्हाड़ी से प्रहार किया गया था, जो पटिया के दीवान से प्रभावित था, जिसका राजा ने सिर काट दिया गया था। उसका सिर अल्मोड़ा से कुछ किमी. दूर कपरखान में गिरादाना गोलू पर गिरा था। दाना गोलू में, गोलू देवता का मूल और सबसे प्राचीन मंदिर है। गोलू देवता को भगवान शिव के रूप में देखा जाता है। उनके भाई भी कलवा देवता भैरव के रूप में हैं और गढ़ देवी शक्ति के रूप में हैं।
  • एक अन्य किंवदंती के अनुसार कहा जाता है कि एक बार एक राजा शिकार के लिए जंगल में गए। वहां जब उन्हें प्यास लगी और उन्होंने होने सेवकों से अपने लिए पानी लाने को कहा। इस उद्देश्य के लिए, सेवकों ने गहन ध्यान में लीन एक महिला से पानी की मांग की। जब राजा ने महिला को देखा तो राजा को उस महिला से प्रेम हो गया और उन्होंने उस महिला से विवाह कर लिया। इसके बाद राजा की दूसरी रानियों को उससे ईर्ष्या होने लग गयी और उन्होंने उसके द्वारा जन्मे नवजात बच्चे को एक संदूक में बंद कर नहर में फेंक दिया। उसके बाद एक मछुआरे को वह बच्चा मिला औरउनसे ही उस बच्चे का पालन पोषण किया। वर्षो बाद जब राजकुमार को स्वपन द्वारा अपनी असली पहचान के बारे में पता चला, तो वह अपने राज्य की और निकल पड़ा। उसने अपनी सौतेली माओं को नदी में स्नान करते हुए देखा, जो कि अपने द्वारा रचे षड्यंत्र को एक दूसरे को बता रही थी। वे साथ में यह भी बता रही थी किस प्रकार उन्होंने नवजात शिशु को संदूक में डालकर पानी में बहा दिया था। ये सभी बाते राजकुमार ने सुन ली और राजा के पास जाकर सब सच बता दिया। अंत में उन सभी सौतेली माओं को दंड दिया गया और उसके पिता द्वारा उसे राज्य सौंप दिया गया। यह बालक और कोई नहीं स्वयं गोलू देवता थे।
  • एक अन्य कहानी के अनुसार गोलू देवता चंद राजा, बाज बहादुर (1638-1678) की सेना के एक जनरल थे और किसी युद्ध में वीरता प्रदर्शित करते हुए उनकी मृत्यु हो गई थी। उनके सम्मान में ही अल्मोड़ा में चितई मंदिर की स्‍थापना की गई। पहाड़ी पर बसा यह मंदिर चीड़ और मिमोसा के घने जंगलों से घिरा हुआ है। हर साल भारी संख्या में श्रद्धालु यहां पूजा अर्चना करने के लिए आते हैं।

 

  • मूल मंदिर के निर्माण के संबंध में हालांकि कोई ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं। परन्तु पुजारियों के अनुसार 19वीं सदी के पहले दशक में इसका निर्माण हुआ था।
  • गोलू देवता लोगों न्याय के लिए भी प्रसिद्ध हैं। इस‌ कारण गोलू देवता को “न्याय का देवता” भी कहा जाता है। श्रद्धालु मंदिरों में मनोकामना मांगने जाते हैं पर माना जाता है कि गोलू देवता के मंदिर में केवल चिट्ठी भेजने से ही मुराद पूरी हो जाती है।
  • इस मंदिर की मान्यता ना सिर्फ देश बल्कि विदेशो में है, इसलिए इस जगह में पर्यटक और श्रदालु दूर-दूर आते हैं।
  • इस मंदिर में प्रवेश करते ही यहाँ अनगिनत घंटिया नज़र आने लगती हैं। कई टनों में मंदिर के हर कोने में दिखने वाले इन घंटे-घंटियों की संख्या कितनी है, ये आज तक मंदिर के लोग भी नहीं जान पाए। आम लोगों के द्वारा इसे घंटियों वाला मंदिर भी कहा जाता है। जहां कदम रखते ही घंटियों की पंक्तियाँ शुरू हो जाती है ।
  • इन घंटियों को भक्तों द्वारा प्रसाद के रूप में या किसी की इच्छा की पूर्ति पर धन्यवाद देने के रूप में लटका दिया जाता है। यह पर्यटन मानचित्र पर एक महत्वपूर्ण धार्मिक आकर्षण है।
  • आमतौर पर चमोली जिले में तीन दिनों की पूजा या 9 दिनों की पूजा में भगवान गोलू देवता को गोरेले देवता के रूप में भी जाना जाता है।
  • गोलू देवता को घी, दूध, दही, हलवा, पूड़ी, पकोड़ी की भेंट जाती है। साथ ही, बकरे की बलि दी जाती है जिसमें दो नर बकरी बलिदान (बाली) किया जाता है। इनमें से एक की गोलू देवता के मंदिर में और दूसरे को दूरस्थ स्थान पर मंदिर के बाहर बलि दी जाती है। बलि के बकरे को पूजा के प्रसाद के रूप में प्राप्त किया जाता है।
  • गोलू देवता की बड़े गर्व और उत्साह के साथ प्रार्थना की जाती है। उन्हें सफेद कपड़े, सफेद पगड़ी और सफेद शॉल की भी भेंट की जाती है।