Garjiya Devi

Garjiya_Devi Uttarakhand

उत्तराखंड में रामनगर के पास स्थित, गर्जिया देवी मंदिर एक पवित्र मंदिर माना जाता है, कोसी नदी की सहायक नदी से घिरा, मंदिर एक समृद्ध, धार्मिक महत्व रखता है ।यह उत्तराखंड के नैनीताल जिले में रामनगर के पास गर्जिया गाँव में स्थित है। यह कॉर्बेट नेशनल पार्क के बाहरी इलाके में स्थित है। यह कोसी नदी के बीच में एक विशाल चट्टान पर स्थित है। यह नैनीताल जिले के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है।

माना जाता है कि गर्जिया देवी, हिमालय के राजा, गिरिराज की बेटी देवी पार्वती का अवतार हैं। कार्तिक पूर्णिमा के दिन, मंदिर में एक बड़े मेले का आयोजन किया जाता है। इसमें हजारों भक्त आते है। मानसून के मौसम को छोड़कर मंदिर की यात्रा पूरे वर्ष पर्यटकों के लिए खुली रहती है, क्योंकि इस मौसम में कोसी नदी में जल स्तर बढ़ जाता है।

 

 

 

यह मंदिर 150 साल से अधिक पुराना है। गर्जिया देवी मंदिर के विषय में वैसे तो बहुत सी अवधारणाएं है ,परन्तु मुख्य रूप से दो अवधारणाएं बहुत प्रचलित है।

  • पहली अवधारणा के अनुसार ,कहा जाता है की कोसी में पानी भर जाने वाली नदी को नियंत्रित करने के लिए, भगवान शिव के भक्त भैरव देव ने गर्जिया, उसकी बहन कोसी से शादी करने और नदी के क्रोध को नियंत्रित करने के लिए खुद वहां रहने के लिए कहा। उनके आदेश का पालन करते हुए, उनकी बहन गर्जिया ने कोसी से विवाह किया और कोसी नदी में स्थित चट्टान में निवास करना शुरू कर दिया। गर्जिया, देवी पार्वती के अवतार में से एक होने के नाते, अपनी उपस्थिति से पूरे स्थान को दिव्य बना दिया और यह माना जाता है कि गर्जिया देवी चट्टान पर रहने के बाद, कोसी नदी फिर कभी इतने उफान पर नहीं आयी।
  • दूसरी अवधारणा के अनुसार, ऐसा कहा जाता है वर्तमान गर्जिया मंदिर जिस टीले में है, वह कोसी नदी की बाढ़ में कहीं ऊपरी क्षेत्र से बहकर आया था। भैरव देव ने टीले को बहते हुए आता देखा। मंदिर को टीले के साथ बहते हुये आता देखकर भैरव देव ने कहा –“थिरौ, बैणा थिरौ” अर्थात् ‘ठहरो, बहन ठहरो’, यहाँ पर मेरे साथ निवास करो। तभी से गर्जिया में उपटा देवी यानी गर्जिया देवी निवास कर रही हैं।

 

  • मान्यता है कि वर्ष 1940 से पूर्व यह क्षेत्र जंगलो से घिरा हुआ था। सर्वप्रथम जंगल विभाग के तत्कालीन कर्मचारियों तथा स्थानीय छुट-पुट निवासियों द्वारा टीले पर मूर्तियों को देखा गया और उन्हें माता जगजननी की इस स्थान पर उपस्थिति का एहसास हुआ।
  • एकान्त सुनसान जंगली क्षेत्र, टीले के नीचे बहती कोसी नदी की प्रबल धारा, घास-फूस की सहायता से ऊपर टीले तक चढ़ना, जंगली जानवरों की भयंकर गर्जना के बावजूद भी भक्तजन इस स्थान पर माँ के दर्शनों के लिये आने लगे। जंगल के तत्कालीन बड़े अधिकारी भी यहाँ पर आये थे।
  • कहा जाता है कि टीले के पास माँ दुर्गा का वाहन शेर भयंकर गर्जना किया करता था। कई बार शेर को इस टीले की परिक्रमा करते हुये भी लोगों द्वारा देखा गया।
  • गर्जिया देवी मन्दिर या 'गिरिजा देवी मन्दिर' उत्तराखण्ड के सुंदरखाल गाँव में स्थित है, जो माता पार्वती के प्रमुख मंदिरों में से एक है। मंदिर छोटी पहाड़ी के ऊपर बना हुआ है, जहाँ का खूबसूरत वातावरण शांति एवं रमणीयता का एहसास दिलाता है।
  • देवी के प्रसिद्ध मन्दिरों में गिरिजा देवी (गर्जिया देवी) का स्थान अद्वितीय है। गिरिराज हिमालय की पुत्री होने के कारण ही इन्हें इस नाम से पुकारा जाता है। मान्यता है कि जिन मन्दिरों में देवी वैष्णवी के रूप में स्थित होती हैं, उनकी पूजा पुष्प प्रसाद से की जाती है और जहाँ शिव शक्ति के रूप में होती हैं।
  • वर्तमान में इस मंदिर में गर्जिया माता की मूर्ति स्थापित हैँ इसके साथ ही माता सरस्वती, गणेश तथा बटुक भैरव की संगमरमर की मूर्तियाँ भी मुख्य मूर्ति के साथ स्थापित हैं। इसी परिसर में एक लक्ष्मी नारायण मंदिर भी स्थापित है। इस मंदिर में स्थापित मूर्ति यहीं पर हुई खुदाई के दौरान मिली थी।
  • कार्तिक पूर्णिमा को गंगा में स्नान के पावन पर्व पर माता गिरिजा देवी के दर्शनों एवं पतित पावनी कौशिकी (कोसी) नदी में स्नानार्थ भक्तों की भारी संख्या में भीड़ उमड़ती है।
  • इसके अतिरिक्त गंगा दशहरा, नव दुर्गा, शिवरात्रि, उत्तरायणी, बसंत पंचमी में भी काफ़ी संख्या में दर्शनार्थी आते हैं। मन्दिर में पहुँचने से पहले श्रद्धालु कोसी नदी में स्नान करते हैं। नदी से मन्दिर तक जाने के लिये 90 सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं।
  • यहाँ आने वाले श्रद्धालु प्रसाद, घण्टा, चाँदी का छत्र आदि चढाते हैं। बहुत-से लोग अपनी मनोकामना के लिये बावड की गाँठ भी बाँधते हैं।
  • सन 1971 में मन्दिर समिति का गठन किया गया था, जो सारी व्यवस्थाएँ करती हैं। वर्षा के दिनों में नदी में तेज बहाव के कारण लोग मन्दिर में नहीं जा पाते।
  • नवरात्र तथा गंगा स्नान पर हज़ारों की संख्या में श्रद्धालु यहाँ आते हैं। अनुमान है कि वर्ष भर में पांच लाख से भी ज़्यादा श्रद्धालु यहाँ आते हैं।

 

'जिम कोर्बेट राष्ट्रीय पार्क' आने वाले पर्यटकों की आवाजाही के कारण भी यह पर्यटन स्थल बनता जा रहा है। सरकार तथा पर्यटन विभाग द्वारा इस ओर सकारात्मक प्रयास भी किये जा रहे हैं।