धारी देवी मंदिर उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में बद्रीनाथ रोड पर श्रीनगर और रुद्रप्रयाग के बीच अलकनंदा नदी के तट पर स्थित है। मंदिर में देवी धारी की मूर्ति का ऊपरी आधा भाग है, जबकि मूर्ति का निचला आधा भाग कालीमठ में स्थित है, जहाँ देवी काली के प्रकट रूप में उनकी पूजा की जाती है। माँ धारी देवी मंदिर देवी काली माता को समर्पित मंदिर है। धारी देवी माँ को उत्तराखंड की पालनहार देवी कहा जाता है। पुजारी के अनुसार, देवी उत्तराखंड में चार धाम केदारनाथ, बद्रीनाथ, यमुनोत्री और गंगोत्री की रक्षा करती हैं। धारी देवी को पहाड़ों और तीर्थयात्रियों की देवी माना जाता है।
- मंदिर में स्थित पुजारियों के अनुसार यह मान्यता है कि एक रात जब भारी बारिश के चलते नदी में जल बहाव तेज था। धारी गाँव के समीप एक स्त्री का क्रंदन सुनाई दिया। यह आवाज़ें जिस स्थान से आ रही थी जब वहां के लोगों ने समीप जाकर देखा तो उन्हें वहां एक मूर्ति तैरती हुई दिखाई दी। किसी तरह ग्रामीणों ने पानी से वो मूर्ति निकाली और मूर्ति निकालने के बाद कुछ ही पल में दैवीय आवाज ने उन्हें मूर्ति उसी स्थान पर स्थापित करने के आदेश दिये, तब से धारी गाँव के लोगों ने इस स्थल को धारी देवी का नाम दिया।
- पुजारियों के अनुसार मंदिर में माँ काली की प्रतिमा द्वापर युग से ही स्थापित है। कालीमठ एवं कालीस्य मठों में माँ काली की प्रतिमा क्रोध मुद्रा में है ,परन्तु धारी देवी मंदिर में माँ काली की प्रतिमा शांत मुद्रा में विराजमान है ।
- धारी देवी की मूर्ति का ऊपरी आधा भाग अलकनंदा नदी में बहकर यहां आया था तब से मूर्ति यही पर स्थित है और तभी से यहां देवी “धारी” के रूप में मूर्ति पूजा की जाती है।
- मूर्ति की निचला आधा हिस्सा कालीमठ में स्थित है, जहां माता काली के रूप में आराधना की जाती है ।
- कालीमठ भारत में 108 शक्तिस्थलों में से एक है। धार्मिक परंपरा के अनुसार कालीमठ एक ऐसी जगह है जहां देवी काली ने रक्तबीज राक्षस को मार डाला था और उसके बाद देवी पृथ्वी के नीचे चली गई थी।
- माँ धारी देवी को जनकल्याणकारी होने के साथ-साथ दक्षिणी काली माँ भी कहा जाता है। माना जाता है कि धारी देवी दिन के दौरान अपना रूप बदलती है। स्थानीय लोगों के अनुसार, इनकी प्रतिमा कभी लड़की, कभी औरत, कभी एक बूढी महिला का रूप ले लेती है।
- मंदिर में माँ धारी की पूजा-अर्चना धारी गाँव के पंडितों द्वारा किया जाता है। यहाँ के तीन भाई पंडितों द्वारा चार-चार माह पूजा अर्चना की जाती है ।
- मंदिर में स्थित प्रतिमाएँ साक्षात व जाग्रत होने के साथ ही पौराणिककाल से ही विधमान है। माँ धारी देवी मंदिर में भक्त बड़ी संख्या में पूरे वर्ष मां के दर्शन के लिए आते रहते हैं । मंदिर में प्रतिवर्ष चैत्र व शारदीय नवरात्री में हजारों श्रद्धालु अपनी मनोकामनाओं को लेकर दूर-दूर से यहाँ पर आते हैं तथा अधिकतर मंदिर में सबसे ज्यादा नवविवाहित जोड़े माँ का आशीर्वाद लेने हेतु आते हैं।
- मंदिर में भक्त बड़ी संख्या में पूरे वर्ष मां के दर्शन के लिए आते रहते हैं। धारी देवी मंदिर में मनाए जाने वाले कई त्योहार है उनमें से, दुर्गा पूजा व नवरात्री में विशेष पूजा मंदिर में आयोजित की जाती है। ये त्योहार यहां का महत्वपूर्ण त्योहार माना जाता है।
जैसा की उपरोक्त पंक्तियों में बताया गया है कि बदरीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग पर श्रीनगर से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर कलियासाद में अलकनन्दा नदी के किनारे सिद्धपीठ मां धारी देवी का मंदिर स्थित है, लेकिन नदी पर बांध बनाने हेतु सरकार ने इस देवी के मंदिर को तोड़ दिया और और जहां पर माता का मूल स्थान था वहां से हटा दिया गया और उसे अन्य जगह पर रख दिया गया। मां काली का रूप माने जाने वाली धारी देवी की प्रतिमा को 16 जून 2013 की शाम को उनके प्राचीन मंदिर से हटाई गई थी। उत्तराखंड के श्रीनगर में हाइडिल-पॉवर प्रोजेक्ट के लिए ऐसा किया गया था। प्रतिमा जैसे ही हटाई गई उसके कुछ घंटे बाद ही केदारनाथ में तबाही का मंजर आया और सैकड़ों लोग इस तबाही के मंजर में मारे गए।
इस मंदिर को बचाने के प्रयास के तहत, राज्य सरकार, केंद्र सरकार और राष्ट्रपति तक को पत्र लिखे जा चुके है। कोर्ट तक में यह मामला था, लेकिन किसी ने भी आस्था के इस प्राचीन केंद्र पर विचार नहीं किया।
इस मंदिर को बचाने के लिए आंदोलन भी चलाये गए थे। आंदोलन में हजारों संख्या मे साधु-संतों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और पर्यावरणविदों द्वारा भाग लिया गया। लेकिन उत्तराखंड की सरकार ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया और अंतत: उत्तराखंड की सहकारी देवी मानी जाने वाली 'धारी देवी' के शक्तिपीठ को तोड़ दिया गया। इसे चाहें तो अंधविश्वास कहें या महज एक संयोग- उत्तराखंड में हुई तबाही के लिए जहां लोग प्रशासन की लापरवाही को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। वहीं उत्तराखंड के गढ़वाल वासियों का मानना है कि माँ कि मूर्ति का मूल स्थान हटाने से माता धारी देवी के प्रकोप से ये महाविनाश हुआ, क्योंकि स्थानीय निवासी माँ धारी देवी को उत्तराखंड की संरक्षक व पालक देवी का रूप कहते है।