Danda Nagraja

Danda_Nagraja Uttarakhand

डांडा नागराज मंदिर

डांडा नागराज मंदिर उत्तराखंड राज्य, पौड़ी गढ़वाल क्षेत्र में एक लोकप्रिय धार्मिक स्थल है। यह पौड़ी में एक प्रसिद्ध स्थान है जो कि श्री कृष्ण से सम्बंधित है। यह मंदिर काफी ऊँचाई पर है। मंदिर के पुजारी ने इस मंदिर की स्थापना लगभग 150 वर्ष पूर्व बताई है। यह मंदिर पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है। काफल, बांज और बुरांस के घने वृक्षों से घिरे यह मन्दिर पर्यटकों के लिये आकर्षण का केन्द्र है। यह मन्दिर इतनी ऊंचाई पर स्थित है कि यहां से मां चन्द्रबदनी (टिहरी), भैरवगढ़ी (कीर्तिखाल),महाबगढ़ (यमकेश्वर), कण्डोलिया (पौड़ी) की पहाड़ियों की सुन्दरता दिखाई देती है। दूर-दूर से पर्यटक इस मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण से आशीर्वाद लेने के लिए जाते हैं। यह स्थान भक्तों की श्रृद्धा का स्थान है। मान्यताओं के अनुसार, ऐसा माना जाता है कि जो भी इस मंदिर में जाता है और पूरी श्रद्धा के साथ उनकी प्रार्थना करता है, भगवान कृष्ण उनकी सभी इच्छाओं को पूरा करते हैं।

 

 

डांडा नाजराज मंदिर पौड़ी शहर से 34 किमी और देवप्रयाग से 49 किमी की दूरी पर स्थित है। यहाँ पहुँचने के लिए टैक्सी या बस बुक की जाती है।

 

  • डांडा नागराज मंदिर की स्थापना के पीछे की कहानी काफी आकर्षक है। कहा जाता हैकि जब भगवान श्री कृष्ण धरती पर उत्तराखंड की यात्रा पर थे, उस समय इस स्थान ने उनका मन मोह लिया था। तभी भगवान कृष्ण को यह स्थान बहुत पवित्र लगा। उसी समय उन्होंने इस स्थान पर साँप का रूप धारण कर लिया। ऐसे रूप में उन्होंने धरती से लिपट कर इस स्थान की परिकर्मा की, जहां पर मंदिर का निर्माण किया गया है। श्री कृष्ण ने स्वपन में आकर बताया कि वह यहाँ विराजमान हैं। यह जानकर पूर्वजो ने इस मंदिर का निर्माण किया। जैसा कि नाम से पता चलता है, 'डांडा' का अर्थ ‘पहाड़’ और 'नागराजा' का अर्थ 'साँप' है, उसी समय से मंदिर को डांडा नागराजा के नाम से जाना जाने लगा।
  • पुजारी और यहाँ के स्थानीय लोगों को अभी भी विश्वास है कि भगवान कृष्ण इस मंदिर में निवास करते हैं और यदि कोई भक्त वास्तव में ईमानदारी से उनकी प्रार्थना करते हैं, तो यह भक्तों की सभी इच्छाओं को पूरा करते हैं।
  • सिद्ध कौथिग त्योहार हर साल अप्रैल में बहुत भव्य पैमाने पर मनाया जाता है। प्रत्येक वर्ष यहाँ कृष्ण जन्माष्टमी के दिन मेला लगता है
  • परन्तु13-14 अप्रैल को, डांडा नागराज मंदिर में एक बड़ा और मुख्य मेला आयोजित किया जाता है, जिसे डांडा नागराज मेले के रूप में जाना जाता है। जिसमें विशेषकर महिलायें अपनी पारम्परिक वेशभूषा में भेंट-पूजा अर्पित करती हैं। इस दिन बड़ी संख्या में भक्तों की भीड़ होती है।
  • इस कृष्ण मंदिर में जाने का सबसे अच्छा मौसम नवंबर से मार्च तक है। इस स्थान पर साल भर तीर्थयात्रियों का आना-जाना लगा रहता है। यह मंदिर न केवल स्थानीय लोगों को आकर्षित करता है, बल्कि हर साल, कई विदेशी लोग भी यहाँ आते हैं। जो लोग गांवों में रहते हैं, वे डांडा नागराजा मंदिर में पवित्र विश्वास रखते हैं।
  • मंदिर तीर्थयात्रियों के आराम करने के लिए संरचना के चारों ओर पर्याप्त जगह के साथ एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित है।
  • मंदिर में कई पुजारी हैं जो भक्तों के लिए पूजा करते हैं। इस मंदिर की खासियत यह है कि भक्तों की मनोकामना पूरी होने के बाद मंदिर परिसर में उनके द्वारा दी हुई घंटियाँ बांध दी जाती हैं।
  • प्रसाद के रूप में, भक्त डांडा नागराजा देवता को भील (एक गोलाकार गुड़) चढ़ाते हैं। डांडा नागराजा के दर्शन के बाद, उनका आशीर्वाद पाने के लिए तीर्थयात्री मंदिर की परिक्रमा करते हैं।
  • डांडा नागराजा मंदिर और उसके आसपास धार्मिक पर्यटकों के लिए धर्मशाला, होटल, दुकानें, विश्राम-गृह तथा पर्यटक अतिथि-गृह भी हैं। वर्तमान समय में श्री चन्डीप्रसाद देशवाल तथा मनमोहन देशवाल पूजा अर्चना का कार्य अच्छे से निभा रहे हैं।