उत्तराखंड शब्द, जिसका अर्थ है "उत्तरी पथ" या "उच्च पथ," उत्तर प्रदेश के हिमालयी जिलों को संदर्भित करता है, पश्चिम में हिमाचल प्रदेश और पूर्व में नेपाल के बीच है। इसमें कुमाऊं और गढ़वाल संभाग के आठ जिले शामिल हैं। मुख्य स्थानीय भाषाएँ कुमाउनी, गढ़वाली और पहाड़ी हैं, कुलीन, व्यवसाय और प्रशासन की भाषा हिंदी है। ९ नवंबर को उत्तराखण्ड स्थापना दिवस मनाया जाता है, आइये इस पर संक्षिप्त प्रकाश डाले।
पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार कुर्मांचल क्षेत्र मानसखण्ड के नाम से प्रसिद्व था। पुराणों के अनुसार राजा कुबेर के राज्य में आश्रम में ऋषि-मुनि तप व साधना किया करते थे। पौराणिक ग्रन्थों में केदार खण्ड व मानस खण्ड के नाम से इस क्षेत्र का व्यापक उल्लेख किया गया है। इस क्षेत्र को देवभूमि व तपोभूमि माना गया है।स्कन्द पुराण में हिमालय के विषय में वर्णन है की हिमालय को पाँच भौगोलिक क्षेत्रों में विभक्त किया गया है-
खण्डाः पंच हिमालयस्य कथिताः नैपालकूमाँचंलौ।
केदारोऽथ जालन्धरोऽथ रूचिर काश्मीर संज्ञोऽन्तिमः॥
अर्थात् हिमालय क्षेत्र में नेपाल, कुर्मांचल (कुमाऊँ), केदारखण्ड (गढ़वाल), जालन्धर (हिमाचल प्रदेश) और सुरम्य कश्मीर पाँच खण्ड आते है।
ऐतिहासिक विवरणों के अनुसार केदार खण्ड कई गढ़ों में विभक्त था। इन गढ़ों के अलग-अलग राजा थे जिनका अपना-अपना आधिपत्य क्षेत्र हुआ करता था। इतिहासकारों के अनुसार पँवार वंश के राजा ने इन गढ़ों को अपने अधीन कर एकीकृत गढ़वाल राज्य की स्थापना की और श्रीनगर को अपनी राजधानी बनाया। केदार खण्ड को तभी से गढ़वाल कहा जाने लगा और तभी से ये नाम प्रचलित हुआ।
कुर्मांचल व कुमाऊँ नाम चन्द राजाओं के शासन काल में प्रचलित हुआ। कत्यूरी राजवंश के बाद कुर्मांचल पर चन्द राजाओं का शासन सन् १७९० तक रहा। सन् १७९० में नेपाल की गोरखा सेना ने कुमाऊँ पर आक्रमण कर कुमाऊँ राज्य को अपने आधीन कर लिया। इसके बाद गोरखाओं का कुमाऊँ पर सन् १७९० से १८१५ तक शासन रहा।
सन् १८०३ में नेपाल की गोरखा सेना ने गढ़वाल राज्य पर आक्रमण कर अपने अधीन कर लिया। गोर्खाली नाम से प्रसिद्ध इस आक्रमण मई महाराजा गढ़वाल ने नेपाल की गोरखा सेना के अधिपत्य से राज्य को मुक्त कराने के लिए अंग्रेजों से सहायता मांगी। जिसमे अंग्रेजी सेना ने नेपाल की गोरखा सेना को देहरादून के समीप सन् १८१५ में अन्तिम रूप से परास्त कर दिया।
गढ़वाल के तत्कालीन महाराजा द्वारा युद्ध व्यय की निर्धारित धनराशि का भुगतान नहीं कर सके जिसके कारण अंग्रेजों ने सम्पूर्ण गढ़वाल राज्य राजा गढ़वाल को न सौंप कर अलकनन्दा-मन्दाकिनी के पूर्व का भाग ईस्ट इण्डिया कम्पनी के शासन में सम्मिलित कर लिया , और गढ़वाल के महाराजा को केवल टिहरी जिले का भू-भाग वापस किया। गढ़वाल के तत्कालीन महाराजा सुदर्शन शाह ने २८ दिसम्बर १८१५ को टिहरी नाम के स्थान पर जो भागीरथी और भिलंगना नदियों के संगम पर एक गांव को अपनी राजधानी स्थापित की।
कुछ वर्षों के उपरान्त उनके उत्तराधिकारी महाराजा नरेन्द्र शाह ने ओड़ाथली नामक स्थान पर नरेन्द्रनगर नाम से दूसरी राजधानी को स्थापित किया। सन् १८१५ से देहरादून व पौड़ी गढ़वाल अंग्रेजों के अधीन व टिहरी गढ़वाल महाराजा टिहरी के अधीन हुआ।
भारतीय गणतन्त्र में टिहरी राज्य का विलय अगस्त १९४९ में हुआ और टिहरी को तत्कालीन संयुक्त प्रान्त (उत्तर प्रदेश) का एक जिला घोषित किया गया। १९६२ के भारत-चीन युद्ध की पृष्ठभूमि में सीमान्त क्षेत्रों के विकास की दृष्टि से सन् १९६० में तीन सीमान्त जिले उत्तरकाशी, चमोली व पिथौरागढ़ का गठन किया गया। सन् १९६९ तक देहरादून को छोड़कर उत्तराखण्ड के सभी जिले कुमाऊँ मण्डल के अधीन हुआ करते थे।
सन् १९६९ में गढ़वाल मण्डल की स्थापना की गयी जिसका मुख्यालय पौड़ी बनाया गया। सन् १९७५ में देहरादून जिले को जो मेरठ प्रमण्डल में सम्मिलित था, गढ़वाल मण्डल में सम्मिलित कर लिया गया। इससे गढ़वाल मण्डल में जिलों की संख्या पाँच हो गयी। कुमाऊँ मण्डल में नैनीताल, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, तीन जिले सम्मिलित थे। सन् १९९४ में उधमसिंह नगर और सन् १९९७ में रुद्रप्रयाग, चम्पावत व बागेश्वर जिलों का गठन होने पर उत्तराखण्ड राज्य गठन से पूर्व गढ़वाल और कुमाऊँ मण्डलों में छः-छः जिले सम्मिलित थे। उत्तराखण्ड राज्य में हरिद्वार जनपद के सम्मिलित किये जाने के पश्चात गढ़वाल मण्डल में सात और कुमाऊँ मण्डल में छः जिले सम्मिलित हैं।
स्वतंत्रता के पश्चात् भी वर्ष २००० से पहले उत्तराखंड का भौगोलिक क्षेत्र उत्तर प्रदेश राज्य में ही सम्मिलित हुआ करता था,जिस कारण हर प्रकार से आर्थिक तथा राजनैतिक दृस्टि से ये राज्य पिछड़ा ही रहा। विकास की धीमी गति और अपनी संस्कृति को बचाने के लिए स्थानीय निवासियों द्वारा अलग राज्य की मांग की गयी ,और बड़ी मात्रा में लोगो द्वारा आंदोलन चलाये गए। इसमें सबसे महत्वपूर्ण रामपुर तिराहा गोली कांड रहा।
२ अक्टूबर, १९९४ की रात्रि को दिल्ली रैली में जा रहे आन्दोलनकारियों का रामपुर तिराहा, मुज़फ़्फ़रनगर में पुलिस-प्रशासन द्वारा उत्तराखंड के निहत्थे आन्दोलनकारियों को रात के अन्धेरे में चारों ओर से घेरकर गोलियाँ बरसाई गईं और आंदोलन में सम्मिलित महिलाओं के साथ दुष्कर्म किया गया। इस गोलीकाण्ड में राज्य के ७ आन्दोलनकारी शहीद हो गए थे। उत्तराखंड के इतिहास में यह घटना काला दिवस के नाम से जानी जाती है।
इसी प्रकार के अनेको संघर्ष के बाद एक नये राज्य के रूप में उत्तर प्रदेश के पुनर्गठन के फलस्वरुप उत्तर प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, २००० के अंतर्गत उत्तराखण्ड की स्थापना ९ नवम्बर २००० को हुई। अत: इस दिन को उत्तराखण्ड में स्थापना दिवस के रूप में मनाया जाता है।
२००७ से राज्य का नाम "उत्तरांचल" से बदलकर "उत्तराखण्ड" कर दिया गया है।
उत्तराखण्ड में १३ जिले हैं जो दो मण्डलों में समूहित हैं: कुमाऊँ मण्डल और गढ़वाल मण्डल।
राज्य पशु कस्तूरी मृग
राज्य पक्षी मोनाल
राज्य वृक्ष बुरांस
राज्य पुष्प ब्रह्म कमल
प्रशासनिक राजधानी: देहरादून
प्रस्तावित राजधानी: गैरसैण
उच्च न्यायालय: नैनीताल
देश में स्थिति: उत्तर भारत
मुख्यमन्त्री: त्रिवेन्द्र सिंह रावत
राज्यपाल: के के पाल
मण्डल संख्या: दो (कुमाऊँ और गढ़वाल)
कुल जिले: तेरह
विधानसभा सीटें: सत्तर
लोकसभा सीटें: पाँच
ऐसे ही नहीं उत्तराखण्ड को 'देवभूमि' के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक काल में इस क्षेत्र में हुए विभिन्न देवी-देवताओं द्वारा लिए अवतार त्रियुगी-नारायण नामक स्थान पर महादेव ने सती पार्वती से विवाह ,मन्सार नामक स्थान पर सीता माता धरती में समाना आदि घटनाये घटित हुई थी। यह
परन्तु देवो की यह पवन भूमि अभी भी विकास की लहार से कोसो दूर है, सरकार की उदासीनता के चलते गावो से अधिक शहरी स्थानों को प्राथमिकता दी जा रही है, परिणाम यह है की पलायन के चपेट में अनेको गांव आ गए है। यदि इसी प्रकार स्थानीय लोगो को रोजगार नहीं मिला तो राज्य के लिए किये गए इतने सारे बलिदान व्यर्थ जाएंगे।