Palaayan

Palaayan
  • 7 Oct
  • 2020

Palaayan

दिल्लू, पलायन पर परेशान ऋषिकेश स्थित अपने किराये के मकान की छत पर शाम को ठंडी बियर और चिकन के तन्दूरी लेग पीस के साथ उत्तराखंड के पहाड़ी गावों से हो रहे पलायन पर फेसबुक में अपने क्रांतिकारी विचार लिखते हुए सरकारों को कोस रहा था कि अचानक ग्रुप में एक मैसेज पढ़कर वह चौंक गया, लिखा था पहाड़ी गाँवों में जमीन चाहिए और कीमत लगभग देहरादून के बराबर, नीचे नम्बर लिखा था...! तुरन्त उसने दिए गए नम्बर पर सम्पर्क किया और अगले दिन मिलने जा पहुंचा उस नंबर के बताए पते पर जो एक चौधरी साहब थे...!!

दिल्लू उनको अपने गाँव ले गया और अपनी पुश्तेनी जमीन दिखाई। जब पूरी जमीन का सौदा तय हो गया तो दिल्लू को 25 लाख मिल गए..!! दिल्लू पूछे बिना भी न रह पाया कि चौधरी साहब पहाड़ों से सारे लोग छोड़कर जा रहे हैं और आप यहां इतनी महंगी जमीन ले रहे हो ?? चौधरी साहब भी उख्खड़ दिमागी थे, कहने लगे.. तू आम खा.. पेड़ मत गिन...!

अब दिल्लू ने भी फटाफट एक छोटा सा प्लाट देहरादून में लिया और 2 कमरे डाल दिए, अब वह भी देहरादून वाला हो गया..! इस बात को 10 साल गुजर गए..!!

दिल्लू चौधरी साहब को बेची अपनी जमीन देखने गया तो वहां अब शानादार कॉटेज बने थे, जहां अंग्रेज बाँज के पेड़ों पर गोवा जैसे झूले लटकाकर आराम फरमा रहे थे। कॉटेज के रिसेप्शन में पहुँच कर जब उसने वहाँ रहने का भाड़ा पूछा तो पता चला, कोदे की रोटी, झंगोरे की खीर, मुला की थिचोनी और हिमालयन बकरी की कचमोली के साथ कुल मिलाकर सात से दस हजार हर रोज का किराया था और योगा क्लास के एक हफ्ते के 10 हजार अलग से..! उसने वहां एक कप घरेलू गाय के दूध की चाय पी जिसका 50 रु का बिल आया..!!

दिल्लू के बच्चे भी अब बड़े हो गए थे जो अब दिल्ली में जॉब कर रहे थे और दिल्ली की एक पुरानी बस्ती में 8x10 की एक कोठरी में रात काट रहे थे क्योंकि वे सुबह शाम तो डीटीसी की बसों में लटके रहते ओर दिन भर फेक्ट्रियों में शरीर गलाते..! थकान से चूर वे रात काटने ही अपने इस क्वाटर में आते..!!

इधर दिल्लू की देहरादून वाली छत के आस पास अब ऊँची छते उग आई थी, खुद उसकी छत उसकी कुंवें की सी मांद सी हो गई थी। वह दिनभर 10x12 के कमरे और टीवी तक सीमित था। अब उसे गाँव की बड़ी याद आती थी, वो खुलापन, वो हरियाली, वो हवा पानी, वो सकून..! पर अब दिल्लू की जड़ें गाँव से उखड़ चुकी थी, दुबारा उन जड़ों को वहां रोपना असम्भव था, क्योंकि अब उन जड़ों का अपने गांव की जमीन से अस्तित्व कब का खत्म हो चुका था..!!

"जय देवभूमि जय उत्तराखण्ड"

चलो गांव की ओर वरना पछताओगे..!

लेखक को हमारा तहे दिल से शुक्रिया।