टिहरी, उत्तराखंड : उत्तराखंड हमेशा से ही रहस्यों का खजाना रहा है। तभी तो उत्तराखंड को देवभूमी के नाम से सारी दुनिया में जाना जाता है। देवभूमी अर्थात् जिस जगह देवी-देवताओं का वास हो। कहा जाता है कि उत्तराखंड के पर्वतों और गुफाओं में देवी देवताओ का बसेरा है। बहुत से लोग इसे लेकर अपने अपने अनुभव भी साझा करते रहते हैं।
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महाभारत काल के अनेकों साक्ष्य आपको यहाँ उत्तराखंड में मिल जायेंगे। महाभारत की कई घटनाये यही हुई थी और आज भी उनके सबूत यहाँ मौजूद हैं । ये पर्वत टिहरी जिले में है। कहा जाता है कि खैट पर्वत पर अप्सराओं का वास है। इन्हें यहां आज भी देखा जा सकता है। गढ़वाल इलाके में वन देवियों को आछरी-मांतरी के नाम से जाना जाता है। बताया जाता है कि यहां आंछरियों को जो लोग एक बार मन में भा जाते हैं, वो उन्हें मूर्छित करके अपने पास रख लेती हैं और अपने लोक में ले जाती हैं। ये बिल्कुल सच है। देवलोक से भू-लोक तक रमण करने वाली ये परियां हिमालय क्षेत्र में वनदेवियों के रूप में जानी जाती हैं। अमेरिका की "मैसाच्युसेट्स यूनिवर्सिटी" के वैज्ञानिकों ने भी एक शोध में पाया है कि इन जगह पर अजीब सी शक्तियां निवास करती हैं। आपको बता दें कि गढ़वाल-कुमाऊं के लोग तो अच्छे से जानते होंगे कि उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल के फेगुलीपट्टी के थात गॉव की सीमा पर अवस्थित 10000 फिट उंचाई की पर्वत श्रृंखला खैट पर्वत में परियों का वास है। खैट पर्वत पर्यटन और तीर्थाटन की दृष्टि से मनोरम है।
खैट पर्वत, समुद्रतल से 10 हजार फीट की ऊंचाई पर है। खैट पर्वत के चरण स्पर्श करती भिलंगना नदी का दृश्य देखते ही बनता है। खैट गुंबद आकार की एक मनमोहक चोटी है। इसलिए विशाल मैदान में स्थित ये अकेला पर्वत अद्भुत दिखाई देता है। कहा जाता है कि खैट पर्वत की नौ श्रृंखलाओं में नौ परियों का वास है। ये नौ देवियां नौ बहनें हैं, जो आज भी यहां अदृश्य शक्तियों के रूप में यहां निवास करती हैं। इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि अनाज कूटने के लिए जमीन पर बनाई जाने वाले ओखल्यारी यहां दीवारों पर बनी है। बड़े बड़े वैज्ञानिक भी इस जगह पर आकर हैरान हैं। हैरत की बात यह है कि इस वीराने में अखरोट और लहसुन की खेती भी होती है।
कहीं ये वही ऐडि-आंछरी/ योगिनियाँ/ रणपिचासनियां तो नहीं? जिन्होंने अंधकासुर दैन्त्य बिनाश में महादेव कैलाशपति का साथ दिया था और कुछ कैलाश जाने की जगह यहीं छूट गई थी। इस चोटी में मखमली घास से ढका एक खूबसूरत मैदान है। जहां से दृष्टि उठाते ही सामने क्षितिज में एक छोर तक फैली हिमचोटियों के भव्य दर्शन होते हैं। आसपास दूर-दर तक कोई दूसरा पर्वत शिखर न होने से ये इकलौता लघुशिखर अत्यंत भव्य मैदान पर पहुंचकर ऐसा आभास होता है मानों हम वसुंधरा की छत पर पहुंच गए हैं। दिल इस पर्वत शिखर से लौटने की अनुमति आसानी से नहीं देता है। कहते है कि थात गॉव से 5 किमी दूरी पर स्थित खैट खाल मंदिर है रहस्यमयी शक्तियों का केंद्र है। प्राचीनकाल से ही इस जगह पर इन बुग्यालों में चिल्लाना, चटक कपड़े पहनना, बेवजह वाद यंत्र बजाना, प्रकृति विपरीत काम करना पूरी तरीके से प्रतिबंधित है। इसलिए वहीं जाएं जो तीन दिन तक नियम संयम और बिना शराब कबाब शबाब के रह सके।
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परियों की हसीन दुनिया में हम जहां आपको लेकर जा रहे हैं वह दिल्ली से बहुत दूर नहीं है। उत्तराखंड के ऋषिकेश से आप सड़क मार्ग से गढ़वाल जिले के फेगुलीपट्टी के थात गॉव तक किसी सवारी से पहुंच सकते हैं। यहां से पैदल परियों की नगरी तक यात्रा करनी पड़ती है।
ऐसा माना जाता है कि परियों को चटकीला रंग, शोर और तेज संगीत पसंद नहीं है इसलिए यहां इन बातों की मनाही है। यहां एक जीतू नाम के व्यक्ति की कहानी भी काफी चर्चित है। कहते हैं जीतू की बांसुरी की तान पर आकर्षित होकर परियां उसके सामने आ गईं और उसे अपने साथ ले गईं।
यहां एक रहस्यमयी गुफा भी है जिसके बारे में कहा जाता है कि इसके आदि अंत का पता नहीं चल पाया है। इस स्थान का संबंध महादेव द्वारा अंधकासुर और देवी द्वार शुंभ निशुंभ के वध से भी जोड़ा जाता है। कुछ लोग अलौकिक कन्याओं को योगनियां और वनदेवी भी मानते हैं।
जो भी है यहां रहस्य और रोमांच का अद्भुत संगम है। अगर रोमांच चाहते हैं तो एक बार जरूर यहां की सैर कर आएं। परियां मिले ना मिले लेकिन आपका अनुभव किसी परिलोक की यात्रा से कम नहीं होगा।