टिहरी गढ़वाल, उत्तराखंड राज्य के गढ़वाल मंडल का एक प्रसिद्ध aur लोकप्रिय जिला है। पर्वतों के बीच स्थित यह स्थान बहुत सौन्दर्य युक्त है। प्रति वर्ष बड़ी संख्या में पर्यटक यहां पर घूमने के लिए आते हैं। यहां की प्राकृतिक खूबसूरती काफी संख्या में पर्यटकों को अपनी ओर खींचती है। तीन नदियों के संगम (भागीरथी, भिलंगना व घृत गंगा) या तीन छोर से नदी से घिरे होने के कारण इस जगह को त्रिहरी व फिर टीरी व टिहरी नाम से पुकारा जाने लगा। टिहरी गढ़वाल दो शब्दों से मिलकर बना है, जिसमें टिहरी शब्द 'त्रिहरी' से बना है, इसका अर्थ है ऐसा स्थान जो तीन तरह के पाप (मनसा, वाचना, कर्मणा से ) मिटाने का काम करता है। वही 'गढ़' का अर्थ है 'किला', इसके पीछे का एक लम्बा इतिहास है।
सन् 888 से पूर्व सारा गढ़वाल छोटे-छोटे 'गढ़ों' में विभाजित था, जिसमें अलग-अलग राज्य के राजा राज करते थे, जिन्हें 'राणा', 'राय' या 'ठाकुर' के नाम से जाना जाता था।
ऐसा कहा जाता है कि माल्वा के राजकुमार कनकपाल बद्रीनाथ धाम के दर्शन के लिए गए थे, वहां वे पराक्रमी राजा भानु प्रताप से मिले। राजकुमार कनकपाल ने राजा भानु प्रताप को काफी प्रभावित किया जिसकी वजह से राजा बहन प्रताप ने अपनी इकलौती बेटी का विवाह कनकपाल से करवा दिया और अपना सारा राज्य कनकपाल को सौंप दिया। हल्के-हल्के करके कनकपाल और उनकी आने वाली पीढ़ियां एक-एक कर सारे गढ़ जीत कर अपना राज्य बढ़ाती गयी। इस तरह 1803 तक सारा गढ़वाल क्षेत्र इनके कब्जे में आ गया।
उन्ही सालों में गोरखाओं के नाकाम हमले (लंगूर गढ़ी को कब्जे में करने की कोशिश) भी होते रहे, लेकिन सन् 1803 में आखिर देहरादून की एक लड़ाई में गोरखाओं की विजय हुई, जिसमें राजा प्रद्यमुन शाह मारे गये। लेकिन उनके शाहजादे (सुदर्शन शाह) जो उस वक्त छोटे थे वफादारों के हाथों बचा लिये गये। धीरे-धीरे गोरखाओं का प्रभुत्व बढ़ता गया और उन्होंने करीब 12 (1803 से 1815) साल तक राज्य किया। इनका राज्य कांगड़ा तक फैला हुआ था, फिर गोरखाओं को महाराजा रणजीत सिंह ने कांगड़ा से निकाल बाहर किया और दूसरी तरफ सुदर्शन शाह ने ईस्ट इंडिया कम्पनी की मदद से (सिंगोली की संधि 1815 ) गोरखाओं से अपना राज्य वापस पुनः छीन लिया लिया।
परन्तु धूर्त अंग्रेजो ने इसी संधि के बदले उस तत्कालीन गढ़वाल की राजधानी श्री नगर को और संपूर्ण अलकनंदा के क्षेत्रों को हड़प लिया। और कुमाऊं, देहरादून और पूर्व गढ़वाल को इस क्षेत्र में मिला लिया था। और पश्चिमी गढ़वाल का टिहरी गढ़वाल और उत्तरकाशी क्षेत्र राजा सुदर्शन को दे दिया और 18 दिसंबर 1815 को राजा सुदर्शन ने टिहरी गढ़वाल को अपने क्षेत्र की राजधानी घोषित कर दिया।
राजा सुदर्शन शाह ने अपनी राजधानी 'टिहरी या टेहरी' शहर को बनाया और बाद में उनके उत्तराधिकारी प्रताप शाह, कीर्ति शाह और नरेन्द्र शाह ने इस राज्य की राजधानी प्रताप नगर, कीर्ति नगर और नरेन्द्र नगर स्थापित की और तीनों उत्तराधिकारी ने 1815 से सन् 1949 तक राज्य किया। इस क्षेत्र के लोगों ने भारत छोड़ो आन्दोलन के खिलाफ अत्यधिक हिस्सा लिया। आज़ादी के बाद लोगों के मन में राजाओं के शासन से मुक्त होने की इच्छा होने लगी एवम् अंत में राजा मानवेन्द्र शाह ने भारत के साथ एक हों जाना कबूल कर लिया। इस तरह सन् 1949 में टिहरी राज्य को उत्तरप्रदेश में मिलकर एक जिला बना दिया गया। बाद में 24 फरवरी 1960 में उत्तरप्रदेश सरकार ने इसकी एक तहसील को अलग कर उत्तरकाशी नाम का एक और जिला बना दिया।
राजा मानवेन्द्र शाह 2007 तक इसलिये राजा माने जाते है क्योंकि ये टिहरी से 2007 तक संसद रह चुके है। आजादी के पश्चात राजा मानवेन्द्र शाह (परमार वंश के 60 वे राजा) ने भारत की रियासतों मैं विलय होने का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और 1 अगस्त 1949 को उत्तर प्रदेश में टिहरी को मिला लिया गया।
इसके पश्चात उत्तर प्रदेश सरकार ने 24 फरवरी 1960 मैं इस तहसील को अलग करके एक उत्तरकाशी नाम का जिला बना दिया गया।