Alpine Musk Deer

Alpine_Musk_Deer
  • 26 Sep
  • 2019

Alpine Musk Deer

अल्पाइन कस्तूरी मृग उत्तराखंड का राज्य पशु है। यह वैज्ञानिक रूप से मॉस्कस क्राइसोगास्टर (Moschus chrysogaster) के नाम से भी जाना जाता है। इसे हिमालयन मस्क डियर भी कहा जाता है। ये हिमालय के साथ-साथ नेपाल, उत्तरी भारत, दक्षिणी चीन, अफगानिस्तान, भूटान और पाकिस्तान में भी पाए जाते हैं।

  • अल्पाइन कस्तूरी मृग लगभग 40-60 सेमी लंबे होते हैं। इनका वजन 10 से 18 किलोग्राम के बीच होता है। इनका रंग भूरा व उसमें काले व पीले धब्बे होते हैं। इनके कान लंबे और गोल होते हैं। 
  • इनकी पूंछ 4-6 सेंटीमीटर तक होती है और टिप पर बालों के एक गुच्छे को छोड़कर बाल रहित होती है। 
  • इनकी छाती से लेकर ठोड़ी तक एक विस्तृत क्रीम रंग की पट्टी होती है और इसकी गर्दन के नाखून पर कई पीले धब्बे होते हैं। युवा कस्तूरी मृग के सफेद धब्बे होते हैं। 
  • अल्पाइन कस्तूरी मृगों के दांत लंबे और घुमावदार होते हैं जो उसके होंठों के नीचे अच्छी तरह से होते हैं। इनके दांत लगातार बढ़ते जाते हैं लेकिन आसानी से टूट भी जाते हैं। नर मृग के दांतों की लंबाई आमतौर से 7-10 सेंटीमीटर तक मापी जाती है जबकि मादाओं के दांत छोटे होते हैं।

 

 

  • अल्पाइन कस्तूरी मृगों की नाभि में पायी जाने वाली कस्तूरी की सुगंध ही इस मृग की विशेषता है। साथ ही, कस्तूरी सिर्फ नर मृग में ही पायी जाती है।
  • कस्तूरी ग्रंथि यौन परिपक्वता के अपने तीसरे वर्ष के दौरान नर मृग की नाभि के बीच विकसित होती है। 
  • इनके प्रजनन का मौसम मुख्य रूप से नवंबर-दिसंबर में होता है, जिसके परिणामस्वरूप मई से जून तक युवा मृग का जन्म होता है। जन्म के बाद, युवा मृग एकांत क्षेत्रों में 2 महीने तक छिपे रहते हैं।
  • प्रजनन के मौसम के दौरान, नर मृग की कस्तूरी ग्रंथियों में उत्पादित कस्तूरी, एक गहरी गंध के साथ गहरे लाल भूरे रंग का दानेदार पाउडर होता है। जबकि प्रजनन के मौसम से पहले और बाद के महीनों में, कस्तूरी सफ़ेद होती है। इसके साथ ही थोड़ी बदबूदार भी होती है।
  • एक मृग में सामान्यत: 30-45 ग्राम तक कस्तूरी पायी जाती है। इस कस्तूरी को दमा, मिर्गी, निमोनिया, टाइफाइड और हृदय रोग के लिए बनाई गयी दवाइयों में इस्तेमाल किया जाता है। 
  • अल्पाइन कस्तूरी मृगों की सूंघने की शक्ति काफी तेज़ होती है। उनकी खतरे के स्रोतों का पता लगाने के लिए सुनने की शक्ति भी काफी तेज़ होती है। ऐसे में वे व्यापक छलांग लगाते हैं और प्रत्येक की लंबाई 6 मीटर तक होती है।

 

  • अपनी कस्तूरी के लिए प्रसिद्ध यह मृग हिम शिखरों में पाया जाता है। ये समुद्र तल से 2000-5000 मीटर की ऊँचाई पर व पहाड़ों में ट्री लाइन में आमतौर पर लगभग 4500 मीटर तक पाए जाते हैं। 
  • इनके आवास में पाए जाने वाले पौधों में बर्च, रोडोडेंड्रोन, ब्लू पाइन, देवदार, ओक, जुनिपर, घास, लाइकेन और झाड़ियाँ शामिल हैं। 
  • हिमालयन कस्तूरी मृग कठोर मौसम की स्थिति के बावजूद भी वर्ष-भर उसी क्षेत्र में रहते हैं, वे कोई भी मौसमी प्रवास नहीं करते हैं।

 

  • अल्पाइन कस्तूरी मृग एक शाकाहारी जुगाली करने वाला एकांत पशु है, जो पौधों की 130 से अधिक विभिन्न प्रजातियों का सेवन करता है। 
  • इनके आहार में कांटे, घास, पत्तियां, कलियाँ, फूल, अंकुर, पहाड़ की राख, एस्पेन, मेपल, विलो, बर्ड चेरी और हनीसकल सहित पेड़ों की छाल शामिल हैं। 
  • ये टहनियाँ, काई और लाइकेन भी कहते हैं। कस्तूरी मृग शरद ऋतु और सर्दियों में ज्यादातर कांटे खाते हैं।
  • साथ ही ये ओक व गूलथरिया जैसे पेड़ों और झाड़ियों की लकड़ी के पौधों की पत्तियों को भी खाते हैं। वसंत और गर्मियों में, इनके आहार मुख्य रूप से फोर्ब्स और लाइकेन होते हैं।

 

 

संरक्षण
  • अल्पाइन कस्तूरी मृगों की कस्तूरी के लिए इनके व्यापक शिकार के परिणामस्वरूप इनकी आबादी में गिरावट आई है। कस्तूरी मृग की आबादी में गिरावट के लिए योगदान देने वाला एक अन्य कारक मानव गतिविधियों के कारण उनके प्राकृतिक आवासों का विनाश है। 
  • प्राकृतिक आवासों के नष्ट होने से कस्तूरी मृगों के लिए भोजन की कमी हो जाती है, और साथ ही, वे शिकारियों के शिकार से अधिक असुरक्षित हो जाते हैं।
  • इनके संरक्षण के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने 1972 में केदारनाथ वन्यजीव अभ्यारण्य में कस्तूरी मृग बिहार की स्थापना की। इसके बाद 1982 में ही केदारनाथ वन्यजीव अभ्यारण्य में काँचुला खर्क में कस्तूरी मृग प्रजनन केंद्र की स्थापना की गयी। काँचुला खर्क कस्तूरी मृगों के लिए प्रसिद्ध है।
  • 1979 से, कस्तूरी मृग को वन्य जीवों और वनस्पतियों (CITES) की लुप्तप्राय प्रजातियों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर सम्मेलन के परिशिष्टों में शामिल किया गया है। 
  • सीआईटीईएस, दुनिया भर के देशों की सरकारों के बीच एक अंतरराष्ट्रीय समझौता है, जिसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि जंगली जानवरों और पौधों के नमूनों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से उनके अस्तित्व को खतरा नहीं है। कस्तूरी मृग की सभी प्रजातियों को आईयूसीएन लाल सूची में खतरे के रूप में वर्गीकृत किया गया है।